मेरे पापा जैसा कोई नहीं....
जब मैं स्कूल में थी...
कुछ 13 या 14 साल की उम्र में
साइकिल के दो पहियों पर हर जगह जाती थी
सहेलियों के साथ अपनी मस्ती में घूमती थी
साइकिल के टायर में हवा भरनी हो
तब मेरी सहेलियाँ कहती थी
मेरे पापा करवा देंगे...
साइकिल में चेन निकल गई
तब मेरी सहेलियाँ कहती थी
मेरे पापा करवा देंगे...
एक बार मेरी साइकिल की बारी आई
मैंने भी उनकी तरह
एक पीसीओ ढूँढा
एक रुपये का सिक्का डाला
और मेरे पापा को फ़ोन लगाया
पापा, मेरी साइकिल की चेन उतर के फंस गई है
मैं पगली सोच रही थी
मेरे पापा आके ठीक करवा देंगे
मेरे पापा बोले,
पैसे हैं तेरे पास
मैंने कहा, हाँ है
पापा बोले...
आस-पास कोई साइकिल रिपेयरिंग की दुकान होगी
वही लेजा अपनी साइकिल...
मैं तो रो ही पड़ी...
ठीक है कह कर फोन रख दिया...
साइकिल घसीट कर काफी दूर चली
और साइकिल ठीक करवा के घर गई।
हिम्मत न थी पूछने की
कि आप क्यों नहीं आए
ऐसे मोके बार बार आए
किताबों के लिए
तो कभी कुछ और
पर हर बार मेरे पापा कहते
जा बेटा तू कर ले...
आज जब हर काम
मैं आसानी से कर लेती हूँ
तब एहसास होता है
कि मेरे पापा मुझे independent बना रहे थे
क्योंकि मुझसे बहुत प्यार करते थे
ये नहीं कि उन्होंने कभी कुछ किया ही नहीं
पर ये कि हमेशा प्यार से
सब कुछ करना सिखाया
अपने पैरो पर खड़ा होना सिखाया
हर मुश्किल का सामना करना सिखाया
उड़ने के सपने दिखाए
और उन सपनों को साकार करना सिखाया...
आज भी
जब कभी मैं कहीं अटकती हूँ
मेरे पापा मुझे रास्ता दिखाते हैं
मेरी हर राह को आसान बनाते हैं...
पापा हो तो मेरे पापा जैसे
पापा हो तो मेरे पापा जैसे...